हवा में ठण्ड
बढ़ी , शाम जल्दी ढलने लगी
पत्ते गिरने
लगे और हवा मे एक महक सी बदली
दिल मे सुगबुगाहट
और मन मे ये ख्याल आया की
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
दादी का बुना
हुआ स्वेटर , दादाजी की वो पुरानी कुर्सी
चाचा का पीके
फिर से वही कॉलेज की कहानी सुनाना
माँ का हाथ
का हलवा और पापा की डांट भी फिर से खाना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
भाई बहनो के
साथ छुपम छुपाई खेलना
चाचा से मिले
ग्यारह रुपये की ख़ुशी और चाची के साथ दिये सजाना
वो हर घर में
रौशनी की अनुभूति फिर से पाना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
कहने को पिछले
साल भी माँ बाप के यहाँ गया था
दादा दादी अब
रहे नहीं, चाचा Covid में चले गए
अब मेरे बच्चे
है, मैं बच्चा नहीं रहा
सीढ़ियों में
मेरे नहीं, उनके दौड़ने की आवाज़ गूंजेगी
अपने आप को
तो इसी बात से बहलाना चाहता हूँ
पर सच में,
इस बार फिर दिवाली पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
पिछली बारी
जब अपने शहर गया था तो अपना ना लगा
कुछ रस्ते भूल
गया तो कुछ लोगो के चेहरे
हर चीज़ की कीमत
बढ़ गयी पर मोल घट गया है
जिस चौक में
पठाके चलाता था, सुना है अब वह कोई नयी मॉल है
फिर से उन्ही
गलियों मे अपनी वो पुरानी साइकिल चलना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
बंटी भैया अब
डॉक्टर शर्मा हो गए , दिवाली पे आते नहीं
पिंकी दीदी
कनाडा चली गयी, सुना है अब क्रिसमस और हेलोवीन मनाती है
पड़ोस वाला रोहित
अब पटाखे नहीं सिर्फ व्हाट्सप्प मैसेज बाँटता है
पहले सबका घर
खुला था, अब लोग गेटेड कम्युनिटीज मे रहते है
शायद दिल भी
थोड़े गेटेड हो गए है, ये सबको बताना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
इस दिवाली पे
सिंगल माल्ट की बोतल खोली और जाम बनाया
सोचा इस बार
मैं कहानी सुनाऊंगा , पर सुनने वाले नहीं थे
बच्चे मोबाइल
मे व्यस्त थे और भाई ने बोला ऑफिस की एक कॉल करनी है
सच है की अब
लक्ष्मी दरवाज़े खोलने से नहीं लैपटॉप खोलने से आती है
अपनी हालत पर
नहीं, किसी पुरानी किस्से पे ठहठहाना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
माँ नै इस दिवाली
पे पुलाव और हलवा बनाया है
बच्चे ने पिज़्ज़ा
की फरमाइश करी और भतीजे ने चोको लावा केक आर्डर करवाया है
पटाखे अब बैन
है और दियो से आग लगने का खतरा बताया है
मिठाई अब सीधा
कामवाली के पास जाती है
हम आगे बढ़ रहे है या दूर जा रहे है, खुद को समझाना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
उपहार के नाम
पे सब अब अमेज़न कूपन पसंद करते है
और दिवाली की
पूजा से ज़्यादा ज़रूरी फोटो खिचवाना
टीवी अब कोई
साथ नहीं देखना चाहता था
इंस्टाग्राम
पे हर किसी का घर मेरे ज़्यादा रोशन लगा , और लोग मेरे से ज़्यादा खुश
मैं भी वैसी
ही ख़ुशी और उत्साह फिर से पाना चाहता हूँ
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ
देख मन उदास
हुआ तो उस पुराने झूले पे जा बैठा
लेकिन तख्ता
थोड़ा कड़ा लगा और रस्सी थोड़ी खुरदरी
पापा से बोला,
"पापा ये झूला वैसा नहीं रहा"
वो हँसे और
बोले "बेटा, अब झूलने वाले वैसे नहीं रहे"
कहा "बेटा
ऐसा एक झूला हमारे गाँव मे हुआ करता था
नीम के पेड़
के नीचे और साथ मे पूरा परिवार.
दादाजी ने इसे
एक दिवाली पे खरीदा था, जब मैं बहुत रोया और बोला था
इस बार दिवाली
पे फिर से घर जाना चाहता हूँ"
बहुत सुंदर रचना एवम भावपूर्ण अभिव्यक्ति। भविष्य के लिए शुभकामनाएं।।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना एवम भावपूर्ण अभिव्यक्ति। भविष्य के लिए शुभकामनाएं।।
ReplyDeleteधन्यवाद
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